Mirza Ghalib shayari in Hindi.He is the world’s famous author in urdu & Hindi shayaries.
हम ने मोहब्बत के नशे में
स कर उसे खुदा बना डाला;
होश तब आया जब उसने कहा के,
खुदा किसी एक का नहीं गोत !
चंद तस्वीर-ऐ-बुताँ , चंद हसीनों के खतूत बा द मरने के मेरे घर से यह सामान निकला
दर्द हो दिल में तो दबा कीजिये
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिये
दुःख दे कर सवाल करते हो
तुम भी ग़ालिब कमल करते हो
देख कर पूछ लिया हाल मेरा
चलो कुछ तो ख्याल करते हो !
शहर-ऐ-दिल में उदासियाँ कैसी
यह भी मुझसे सवाल करते हो !
मारना चाहे तो मर नहीं सकते
तुम भी जिन मुहाल करते हो !
अब किस किस की मिसाल दू में तुम को
हर सितम बे-मिसाल करते हो !
हजारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मेरे अरमान , लेकिन फिर भी कम निकले
वो आये घर में हमारे , खुदा की कुदरत है
कभी हम उन्हें कभी अपने घर को देखते है!
पीने दे शराब मस्जिद में बैठ के, ग़ालिब
या वो जगह बता जहाँ खुदा नहीं है!
हाथों की लकीरो पे मत जा ग़ालिब
नसीब उनके भी होते है जिनके हाथ नहीं होते !!
कोई उम्मीद बर नहीं आती
कोई सूरत नजर नहीं आती
मौत का एक दिन मु’अइयन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती
आगे आती थी हाल-ए-दिल प हँसी
अब किसी बात पर नहीं आती!!
ग़ालिब! प्रमिका का दिल जो मेरा घर है, मैं उसमें रहता हूँ. मेरे उस घर में प्रेम के अंकुर हरीतिमा के रूप में परवान चढ़ रहे है. मेरा शरीर तो बियाबान (जंगल) में हैं!!
किन्तु मेरे घर, मेरी प्रेमिका के दिल में बसंत ऋतु का आगमन हो गया है. उसके दिल में मेरे मेरे प्रेम के फूल खिल रहें हैं.
तुम्हारा मुझे इस तरह बार-बार ‘तू क्या हैं, तू क्या है’ कहकर मेरा अपमान करने का कारण क्या हैं. तुम ही मुझे बताओं कि सुसंस्कृत और शिष्ट लोग क्या इस तरह वार्तालाप करते हैं.
Mirza Ghalib shayari
हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था
आप आते थे मगर कोई अनागीर भी!!
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है !!
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ !!
‘ग़ालिब’ बुरा न मान जो वाइ’ज़ बुरा कहे
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे !
एक तीर जिस में दोनों छिदे पड़े हैं
वो दिन गए कि अपना दिल से जिगर जुदा थ!
बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मिरे आगे
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है!
जान तुम पर निसार करता हूँ
मैं नहीं जानता दुआ क्या है!
उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ वो समझते है की बीमार का हाल अच्छा है!
तुम न आए तो क्या सहर न हुई
हाँ मगर चैन से बसर न हुई
मेरा नाला सुना ज़माने ने मगर,
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई!
दिल-ए-नादान तुझे हुआ क्या है
आखिर इस दर्द की दवा क्या है!
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल
जब आँख ही से न टपका तो लहू क्या है!
फिर उसी बेवफा पे मरते हैं
फिर वही ज़िन्दगी हमारी है
बेखुदी बेसबब नहीं ‘ग़ालिब’
कुछ तो है जिस की पर्दादारी है!!
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है !
मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले!
थी खबर गर्म, के ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्ज़े,
देखने हम भी गए थे, पर तमाशा न हुआ.!
तेरी दुआओं में असर हो तो, मस्जिद को हिला के दिखा, नहीं तो दो घूँट पी और मस्जिद को हिलता देख.!
बाजीचा-ऐ-अतफाल है दुनिया मेरे आगे,
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे.!