50+ Best Mirza Ghalib Shayari in Hindi

Isharat e katharahai

इशरत-ए-क़तरा है,
दरिया में फना हो जाना
डार का है तो गुजारना है,
दाव हो जाना ..!


हम को मालूम है,
जन्नत की हकीकत,
दिल के पास रुख को,
ग़ालिब ये ख्याल अचला है।!


मैं नादान था जो वफ़ा को,
तलाश करता रहा ‘ग़ालिब’,
यह न सोचा के एक दिन,
अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी..!


रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है!


हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन, दिल के खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है!!


रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं..


Fikr a duniya me

फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ !!


क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँ, मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में !!

~Mirza ghalib shayari


भीगी हुई सी रात में जब याद जल उठी, बादल सा इक निचोड़ के सिरहाने रख लिया !!


तोड़ा कुछ इस अदा से ताल्लुक उसने ग़ालिब, कि हम सारी उम्र अपना क़ुसूर ढूँढ़ते रहे।


हमने माना कि तग़ाफुल न करोगे लेकिन,
खाक हो जायेंगे हम तुझको ख़बर होने तक।


इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया,
वरना हम भी आदमी थे काम के।


आईना क्यों न दूँ कि तमाशा कहें जिसे।
ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे।।


Mirza ghalib

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक, वो समझते हैं बीमार का हाल अच्छा है।


बेवजह नहीं रोता कोई इश्क़ में ग़ालिब
जिसे ख़ुद से बढकर चाहो वो रुलाता ज़रूर है।


ये न थी हमारी किस्मत कि विसाल-ए-यार होता। अगर और जीते रहते यही इंतज़ार होता।।


ग़ालिब शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर,
या वो जगह बता जहाँ पर ख़ुदा न हो।


इस सादगी पे कौन न मर जाये ऐ खुदा।
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं।।


आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक।
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक।।


Ashiqa hun

आशिक़ हूँ पर माशूक़ फ़रेबी है मेरा काम,
मजनू को बुरा कहती है लैला मेरे आगे।


ग़ालिब बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे,
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे।


हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के खुश रखने को ग़ालिब ये ख्याल अच्छा है!


इश्क ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के


इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ खुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं!!


मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले!


हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मीरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले!


उन के देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक, वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है!


रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं का िल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है !


इशरत-इ-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना !!


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